Saturday 14 May 2022

आईएएस पूजा सिंघलः भ्रष्ट थी या फिर बनाई गई

भारतीय प्रशासनिक सेवा की 2000 बैच की अधिकारी पूजा सिंघल 21 साल की आयु में यूपीएससी परीक्षा पास की थी. सबसे कम उम्र में परीक्षा पास करने वाली बनी और रिकॉर्ड बनाई, जो अब तक टूटा नहीं है. प्राइमरी शिक्षा से टॉपर रही पूजा सिंघल यूपीएससी परीक्षा पास की तो झारखंड कैडर मिला. झारखंड के हजारीबाग जिले में सदर अनुमंडल पदाधिकारी के रूप में सेवा की शुरुआत की. शुरुआती दिनों में कई महत्वपूर्ण काम की, जिससे ईमानदार और करक अधिकारी के रूप में चर्चित हुई. लेकिन वहीं ईमानदार और करक अधिकारी आज भ्रष्टाचार के आरोप में गिरफ्तार है. अब सवाल है कि पूजा सिंघल भ्रष्ट थी या फिर कार्यपालिका और विधायिका की भ्रष्ट सिस्टम ने भ्रष्ट बना दिया. यह भी जांच का विषय है, जो होगा नहीं.

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      हजारीबाज से सेवा की शुरुआत करने वाली पूजा सिंघल अपने काम की वजह से हमेशा सुर्खियों में रही. अनुमंडल पदाधिकारी के बाद शिक्षा परियोजना में जिम्मेदारी संभाली, तब बच्चों को दी जाने वाली किताबों में बड़े पैमाने पर व्याप्त भ्रष्टाचार को खत्म की. इस भ्रष्टाचार को खत्म करते हुए गिरोह का भंडाफोड़ किया. पूजा सिंघल की वजह से ही पहली बार झारखंड में दिव्यांगों का सर्वे हुआ. इसके बाद झारखंड के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल रिम्स में निदेशक प्रशासन के तौर पर काम की. रिम्स में भी सराहनीय कार्य की, जिसकी चर्चा लोग आज भी करते हैं. इसके बाद जिलों का कमान संभालते ही भ्रष्टाचार का आरोप लगने लगा.

       2006 में निर्दलीय विधायक मधु कोडा के नेतृत्व में झारखंड की सरकार बनी, जो भ्रष्ट सरकार के रूप में जानी जाती है. साल 2007 में मधु कोडा शासनकाल में पूजा सिंघल को मुख्यालय से खूंटी उपायुक्त यानी डीएम बनाकर भेजा गया. पदभार संभालने के कुछ ही महीनों में उनका विवादों से नाता जुड़ने लगा. खूंटी में उपायुक्त रहते उनपर मनरेगा योजना में 16 करोड़ रुपये का वित्तीय अनियमितता का आरोप लगा. इस मामले में इंजिनियरों से सांठगांठ का भी आरोप है.

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     खूंटी में वित्तीय अनियमितता का आरोप लगा तो चतरा उपायुक्त बनाकर भेज दिया. चतरा में एक एनजीओ को नियम विरुद्ध तरीके से छह करोड़ रुपये देने का आरोप लगा. इस मामले को एक विधायक ने विधानसभा में उठाया. इसके बाद विधानसभा की कमेटी ने जांच की. जांच प्रक्रिया चलती रही. रघुवर दास की सरकार बनी तो पूजा सिंघल पर लगे सभी आरोप बेदुनियान निकलें और क्लीनचीट देते हुए प्रमोट किया गया. अब आप सुधी पाठक समझिए कि भ्रष्ट तंत्र कैसे विकसित होता है.


    पूजा सिंघल क्लीन से भ्रष्ट तब हुई, जब उनके सीए सुमन के घर पर प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने छापा मारा और 19.31 करोड़ रुपये बरामद किए. रुपये बरामद होते ही पहले से उथल-पुथल हेमंत सरकार में खलबली मच गई. बीजेपी हमलावर हो गई और गिरफ्त में आ गई आईएएस पूजा सिंघल. ईडी ने पूजा सिंघल, उनके पति अभिषेक झा और सीए से पूछताछ की. एक दिन की पूछताछ के बाद पूजा सिंघल को गिरफ्तार किया गया. आईएएस पूजा सिंघल एक रात जेल में बिताई और अब ईडी ने पांच दिनों के रिमांड पर लेकर पूजा सिंघल और सीए सुमन से लगातार पूछताछ कर रही है.


   सवाल यह है कि पूजा सिंघल पर भ्रष्टाचार का आरोप साल 2007-08 में लगा. साल 2007 से 2022 तक राज्य और केंद्र में भी सरकारे बदली और बनी. लेकिन भ्रष्टाचार के आरोपी पूजा सिंघल पर कार्रवाई नहीं हुई. इस भ्रष्टाचार को लोकतंत्र के मंदिर में बैठे कार्यपालिका और विधायिका के जिम्मेदार लोग इतने दिनों तक छुपा पर क्यों रखे. क्योंकि हम भ्रष्टम के भ्रष्ट हमारे.... बाकी आप खूद समझदार हैं.

Tuesday 26 April 2022

सियासी प्रपंच में कहीं गुम हो गया महंगाई की मुद्दा

महंगाई, महंगाई की शोर. यह शोर कभी पंचायत से लेकर राष्ट्रीय स्तर पर गूंजती थी. तब जब पेट्रोल 72 रुपये के करीब, डीजल 56 रुपये के करीब, रसोई गैस 410 रुपये और सरसो तेल 70 से 80 रुपये के बीच थी. महंगाई डायन खाय जात हैं, बहुत हुई महंगाई की मार... अब की बार... की सरकार. अब की बार... की सरकार बनी, जो लोगों की आशा और उम्मीद की सरकार है. लेकिन इस आशावादी सरकार के शासनकाल में रोजाना महंगी होती सामानों से आमलोग परेशान हैं. इस परेशानी की चर्चा प्रत्येक निम्न और मध्य वर्गीय घर में हो रही है. इसके बावजूद यह चर्चा घर-परिवार से बाहर नहीं निकल रही है. क्या इस आशावादी सरकार की प्रपंच में महंगाई का मुद्दा गुम हो गई है और विपक्षी पार्टियां भी इस अहम मुद्दें को उठाने की साहस नहीं जुटा पा रही है.

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  आशावादी सरकार की प्रपंच यह है कि 130 करोड़ की आबादी वाले देश में 80 करोड़ लोगों को मुफ्त में राशन उपलब्ध कराना. यह आबादी मुफ्तभोगी या कहे लाभार्थी हैं, जिसकी सोच और मानसिकता मुफ्त के चावल और गेंहू पर अटक गई है. इन्हें पेट्रोल महंगा हो या सरसो तेल या फिर हरी सब्जियां. इस महंगाई से इन 80 करोड़ लोगों को कोई फर्क नहीं पर रहा हैं. क्योंकि इनको नहीं कल की चिंता हैं और नहीं अपने बच्चे की भविष्य का फिक्र हैं. शेष 50 करोड़ की आबादी में करीब 40 करोड़ लोग नौकरीहारा हैं, जिनकी फिक्स मासिक वेतन हैं. इन लोगों को बढ़ती महंगई के अनुरूप मासिक वेतन में बढ़ोतरी नहीं हुई. लेकिन बढ़ती महंगाई की बोझ पड़ता चला जा रहा है. महंगाई की वजह से इन लोगों को घर चलाना मुश्किल हो गया हैं. इसकी आवाज उठाने वाली कॉरपोर्ट मीडिया को श्रीलंका और पाकिस्तान की महंगाई दिख रही है. लेकिन अपने देश की महंगई नहीं दिखती है.


अब आपको याद दिलाते हैं साल 2013-14. इस साल में भी लोग महंगाई से त्रस्त थे. केंद्र की सरकार महंगाई नियंत्रित करने में नाकाम साबित हो रही थी. तब गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री और अब के प्रधानमंत्री महंगाई को मुद्दा बना कर हर मंच पर जिक्र करना नहीं भुलते थे. इसके साथ ही कई बीजेपी के नेता प्यास, गोभी, आलू आदि के माला पहने और सिर पर गैस सिलिंडर लिए सड़क पर दिखते थे, जो आज केंद्रीय कैबिनेट के हिस्सा हैं. लेकिन वर्तमान समय में महंगाई साल 2013-14 की तुलना में ज्यादा भयावह और अनियंत्रित स्थिति में है. इसके बावजूद इन आंदोलनकारी बीजेपी नेताओं को अब महंगाई नहीं दिख रही है.


  महंगाई को भयावह इसलिए कह रहे हैं. क्योंकि साल 2014 में अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे पेट्रोल की कीमत 106.85 डॉलर प्रति बैरल थी. तब पेट्रोल पंप पर आमलोगों को पेट्रोल 71.41 रुपये प्रति लीटर मिल रही थी. आज कच्चे पेट्रोल की कीमत 111 रुपये प्रति बैरल है, जो साल 2014 की तुलना में पांच डॉलर अधिक है. लेकिन आमलोगों को पेट्रल 120 रुपये प्रति लीटर के करीब मिल रहा है. यानी साल 2014 की तुलना में 45 प्रतिशत की बढ़ोतरी की गई है. इतना ही नहीं, सरसो तेल तो दोगुना से भी अधिक कीमत पर बिक रही है. नमक भी 10 रुपये प्रति किलोग्राम की जगह 20-22 रुपये प्रति किलोग्राम बिक रही है. इसके अलावा दाल, आटा, मसाला, जीवन रक्षक दवाइयां सब की कीमतों में भारी इजाफा हुई है.



आशावदी सरकार ने महंगाई की मद्दा को हिजाब, रामनवमी जुलूस, मंदिर-मस्जिद में समेट दिया है. कॉरपोरेट मीडिया हाउस बढ़ती महंगाई से हो रही समस्या को छोड़ दिन-रात हिजाब और रामनवमी दिखाने में लगी हैं. लेकिन यह नहीं भूलना चाहिए कि महंगाई ने पूर्व में कई राज्य सरकारों और केंद्र सरकार को लील गई है. अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा था बर्दास्त की भी एक सीमा होती है, तो क्या जनता बर्दास्त की उस सीमा का इंतजार कर रही है. 

Wednesday 6 April 2022

बिहार की राजनीति के मझधार में डूबे मुकेश सहनी

बिहार की राजनीति की पटकथा पटना में लिखी जाती है, उस पटना में राजनीति कलाकार भी हैं और मंचन के लिए कालीदास रंगालय और प्रेमचंद रंगालय जैसे मंच भी. लेकिन जिस सियासत की पटकथा का मंचन सन ऑफ मल्लाह करने चले थे, उस पटकथा के मझधार में ऐसे फंसे कि नहीं मांझी निकाल सकें और नहीं लालू प्रासद यादव पर उमरता प्यार ही बचा सका. स्थिति यह हुई कि वीआईपी पार्टी के तीन विधायक बिहार बीजेपी में शामिल हो गए और खुद को मंत्री पद गवानी पड़ी. अब नाव की खेबइया कहलाने वाले सन ऑफ मल्लाह यानी मुकेश सहनी दरिया का किनारा खोज रहे हैं, ताकि संजीवनी बुटी लेकर फिर राजनीति के मैदान में उतरे तो लोक लाज का बोध नहीं हो.

 

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    दरअसल, उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव की सुगबुगाहट शुरू हुई तो मुकेश सहनी बिहार से उत्तर प्रदेश शिफ्ट हुए और फिल्मी स्क्रीप्ट की तरह बिहार की राजनीति की पटकथा लिखनी शुरू की. यह पटकथा वैसे ही थी, जो ढाई से तीन घंटे में समाप्त हो जाती है. और हुआ भी वहीं. यूपी चुनाव खत्म होते ही मुकेश सहनी बिहार की राजनीति में हासिये पर चले गए. यह तय भी था. क्योंकि बिना जनाधार वाले नेता मुकेश सहनी बीजेपी की मदद से गठबंधन में शामिल हुए और चुनाव हारने के बाद भी मंत्री पद से सुशोभित हुए थे. लेकिन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व का तारिफ करते हुए बीजेपी पर हमलावर हो गए और फिर विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव को ढाई-ढाई साल के फॉर्मुले का ज्ञान. इसकी वजह भी है. मुकेश सहनी उस चकाचौंध से निकले नेता हैं, जहां माया जाल और काल्पनिक लोक में भ्रमण कर लोग रातोंरात स्टर बन जाते हैं. वैसे ही मुकेश सहनी फिल्मी स्क्रीप्ट की तरह राजनीति पटकथा लिखकर रातोंरात बिहार की राजनीति में बड़े राजनीतिज्ञ बनना चाह रहे थे. लेकिन हुआ उल्टा. नहीं माया मिली और ना राम और हो गए टाय-टाय फिस.

         अब मुकेश सहनी की पार्टी वीआईपी वहीं पहुंच गई हैं, जहां से राजनीति शुरू की थी. मुजफ्फरपुर जिले के बोचहा विधानसभा चुनाव 2020 में वीआईपी को सीट मिली और वीआईपी पार्टी के उम्मीदवार मुसाफिर पासवान जीत दर्ज की. लेकिन उनकी मौत के बाद उपचुनाव होने जा रहा है. यह उपचुनाव भी इंट्रेस्टिंग है. इसकी वजह है कि पटकथा में चीट हो चुके मुकेश सहनी. बीजेपी ने वीआईपी के लिए सीट नहीं छोड़ी तो मुकेश सहनी खुद एनडीए गठबंधन से अलग हुए और चुनाव मैदान में उतरे. लेकिन बीजेपी ने खेल कर दिया और वीआईपी पार्टी के प्रत्याशी बेबी कुमारी को पार्टी में मिलाने के साथ साथ प्रत्याशी भी बना दिया. मजबूरन वीआईपी ने डॉ गीता को प्रत्याशी बनाकर मैदान में उतारा है.

 

        बोचहा विधानसभा सुरक्षित होने के साथ साथ मलाह बहूल सीट भी है. इस मलाह बहूल सीट पर वीआईपी ने 9 बार के विधायक रहे रमई राम की बेटी तो बीजेपी ने रमई राम को हरा चुकी बेबी कुमारी को उम्मीदवार बनाया हैं. अगर डॉ गीता चुनाव जीत जाती हैं तो मुकेश सहनी का सन ऑफ मल्लाह का तगमा बरकरार रह जाएगा. अन्यथा इस तगमा पर भी संकट गहरा जाएगा. 

Monday 28 March 2022

बिहार में शरबबंदीः हकीकत या फिर फसाना.....

 रंगोत्सव का त्योहार होली. इस त्योहार में सदियों से शराब पीने-पीलाने की चलन रहा है, जो नहीं होना चाहिए. हालांकि, संपन्नता के आधार पर आज भी लोग होली के दिन खुब शराब पीते और पिलाते हैं. लेकिन, बिहार में साल 2016 से शराब पर पूर्ण पाबंदी है यानी ड्राइ स्टेट है. इसके बावजूद इस होली ने बिहार में 41 परिवारों को लील गया. क्योंकि 41 गरीब और निर्धन लोगों ने चोरी छुपे नकली, घटिया या फिर जहरीली शराब पी, जिससे उनकी जान चली गई. यह हम नहीं कह रहे हैं, बल्कि उनके परिजन कहते है कि शराब पीने से मौत हुई हैं. हालांकि, यह संदिग्ध मौत है, जिसका जिला प्रशासन और पुलिस प्रशासन जांच कर रही हैं. बिहार में शराबबंदी हकीकत है या फसाना... यह आप पाठकों पर विचार करने के लिए छोड़ रहे हैं.


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    शबारबंदी लागू किया गया तो सुशासन बाबू ने कहा था महिलाओं के सुझाव पर यह फैसला लिया है. इस कुरीतियों से बिहारवासियों को छूटकारा मिलेगा और संपन्नता आएगी. खासकर, गरीब परिवार खुशहाल और आर्थिक रूप से संपन्न होंगे. महिला उत्पीड़न पर भी ब्रेक लगेगी. लेकिन हो उल्टा रहा है. सुशानबाबू कभी उस महिला से जाकर नहीं पूछे, जिस महिला की पति जहहरीली शराब के शिकार होकर जान गंवा दी. उस महिला की संपन्नता पूछना तो दूर उचित न्याय भी नहीं दिलाया जा सका. अब कह रहे हैं पीएंगे तो जाएंगे ही. वाह रे सुशासनबाबू. हकीकत यह है कि साल 2016 से लेकर अब तक सैकड़ों की संख्या में लोगों ने जहरीली शराब की चक्कर में जान गवां दी. पिछले तीन-चार महीने में ही 208 लोगों की मौत जहरीली शराब के सेवन से हुई है. हालांकि, यह भी हकीकत है कि आपके अधिकारी इस मौत को पेट में दर्द, गंभीर बिमारी, हार्ट अटैक और ना जाने क्या क्या रूप दे देते है, जिससे संदिग्ध मौत मान लिया जाता है. इस मौत की वास्तविक हकीकत भी तब पता चलेगा, जब दूसरे स्टेट में पोस्टमार्टम कराएंगे. अन्यथा हमेशा की तहर लिपापोती होता रहेगा और लोग जहरीली शराब की चपेट में आते रहेंगे.

 

         होली में हुए संदिग्ध मौत के बाद एक सवाल उठने लगा है. यह सवाल सड़क से सदन तक में उठा है. सवाल यह कि क्या बिहार में सिर्फ गरीब लोग ही शराब पीते हैं, तो शराबबंदी से पहले बिकने वाली महंगी शराब कौन पीता है. यह फिर महंगी शराब पीने वाले लोग शराब पीना छोड़ दिए हैं या वे शराब पीते है तो पकड़े क्यों नहीं जाते हैं. सवाल उठाने वाले तो यह कह रहे हैं कि सरकार और प्रशासन में पहुंच रखने वाले लोग होम डिलेवरी से शराब मंगवा रहे हैं. लेकिन वे नहीं पकड़े जाते हैं और नहीं कोई कार्रवाई होती है. यह शराबबंदी कानून दोहरा मपदंड वाला साबित हो रहा है. अन्यथा, सरकार सूची जारी कर सार्वजनिक करे कि पिछले पांच सालों में कितने संपन्न लोगों को शराब पीने के आरोप में कार्रवाई की गई है.

 


       सुशासन बाबू आपको याद ही होगा, जब गोपालगंज में जहरीली शराबकांड हुआ था. इस कांड के बाद आप हाई लेवल मीटिंग की और वरीय अधिकारियों को सख्त निर्देश दिया. निर्देश के आलोक में आपके पुलिस प्रशासन बिना सूचना के किसी के घर में जांच के नाम पर घूस जा रहे हैं. इतना ही नहीं, जिस लड़के- लड़कियां की शादी है, उसके घर में भी आपकी पुलिस घूस जा रही है. नव विवाहित लड़की की घर को भी बख्शा नहीं जा रहा है. स्थिति यह है कि तैयार हो रही लड़कियां असहज महसूस करने लगी. लेकिन आपके पुलिस को थोड़ा भी शर्म चेहरे पर नहीं दिखी. यह कोई एक जगह की घटना नहीं है, बल्कि कई जगह की घटना हैं. इसके समर्थन में आपका भी बयान आया. आपके दिशा निर्देश पर ही बिहार पुलिस अपराधियों को पकड़ने के बदले ड्रोन और हेलीकॉप्टर से शराब की तलाशी कर रही है. इसका भी हकीकत क्या है. हकीकत यह है कि रोजाना शराब की भट्टी ध्वस्त किए जा रहे हैं और शराब के साथ तस्कर गिरफ्तार हो रहे हैं. लेकिन इसके समानांतर शराब के कारोबार दिन रात फलफूल रहा है, जिसका परिणाम है कि हमेशा लोग जहरीली शराब के शिकार हो रहे हैं. 

Thursday 24 December 2020

सरकार की आइने में किसान संगठनों का आंदोलन

 

अडानी व अंबानी के लिये बनायी गयी तीन कृषि बिल. इस बिल को वापस लेने की मांग को लेकर किसान पिछले 30 दिनों से दिल्ले के बोर्डरों पर डेरा डाले हुये है. भारत सरकार किसानों को समझने को लेकर छह दौड़ की वार्ता कर चुकी है और आगे भी वार्ता करने को तैयार है. किसान दिन व समय निर्धारित करे व प्रस्ताव लेकर पहुंचे. लेकिन, किसान तीन कृषि बिल को मानने को तैयार नहीं है. वहीं, सरकार बिल में संशोधन करने को लेकर भी तैयार है, जिसे किसान अस्वीकार कर दिया है.

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         किसान संगठनों की एक छोटी व वास्तविक मांग है. न्यूनतम समर्थन मूल्य(एमएसपी) की गारंटी. इस मांग को मानने में सरकार को क्या आपत्ति हो सकती है. दरअसल, इस मांग को सरकार मान लेती है, तो अडानी व आंबानी लाभान्वित नहीं हो सकेंगे. सरकार को चाहिये किसान संगठनों से सार्थक वार्ता करे. लेकिन, इसके उलट किसानों के आंदोलन को खत्म करने के लिये देश के सभी राज्यों में किसान चौपाल का आयोजन की जा रही है, जिससे खुद प्रधानमंत्री, कृषि मंत्री, मुख्यमंत्री व अन्य बड़े नेता चौपालों में शिरकत कर रहे है. इसके साथ ही भाजपा नेताओं की ओर से किसान आंदोलन को कमजोर करने को लेकर खालिस्तान व नक्सल आंदोलन का नाम देने की कोशिश की जा रही है. इतना ही नहीं, किसानों को बांटने की भी कोशिश की गयी है, ताकि किसान आंदोलन टुकड़े-टुकड़े में बंट कर आंदोलन अपने आप खत्म हो जाये. दरअसरल, सरकार की आइने में किसान आंदोलन वास्तव में आनंदोलन नहीं है, यह नक्सल व उग्रवाद का आंदोलन है, जो किसानों को लाभ पहुंचाने नहीं देना चाहती है.

         कृषि बिल से किसानों की आय दो गुनी से भी अधिक बढ़ जायेगी. इसको लेकर सरकार की ओर से दलील दी जा रही है कि किसानों को खुला बाजार मिलेगा और फसल अपनी कीमत पर बेच सकेंगे. किसान आंदोलन के दौरान ही समस्तीपुर के एक किसान को खेत में लगे फसल का कीमत नहीं मिल रहा था, तो फसल लगे खेत में ट्रैक्टर चलाना शुरू कर दिया. इस घटना का संज्ञान केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद जी लिये और दिल्ली के व्यापारी से संपर्क कर 10 गुणा कीमत पर फसल बेचवा दिया. इसका खुब वाहवाही हुयी. खुले बाजार का लाभ बताया जाने लगा. हकीकत यह है कि खुले बाजार का लाभ किसानों को तभी मिलेगा, जब एमएसपी की गारंटी मिलेगी. इस  वाहवाही की वास्तविकता ठीक चार दिनों के भीतर ही मुजफ्फरपुर में दिखने को मिला, जब मुजफ्फरपुर के किसान भी फसल लगे खेत में ट्रैक्टर चलाया, जिसका सुध लेने वाला कोई नहीं था. 



बिहार में किसान औने-पौने कीमत पर अपने फसल बेचने को मजबूर है. इसलिये अब राज्य में गिने-चुने किसान बच गये है. अमूमन किसान अपने खेतों को मनखप या बटइया के माध्यम से खेती कर रहे है. इसका वजह है कि खेती से लागत भी नहीं वसूल हो पाता है. प्रदेश में धान का एमएसपी 1835 रुपये निर्धारित है. लेकिन, पूरे राज्य में धान 1050 से 1100 रुपये प्रति क्विंटल बिक रहा है. हालांकि, राज्य सरकार ने कृषि सुधार को लेकर कृषि रोड मैप बनायी है. किसानों को लेकर एक से एक लाभान्वित योजनाएं है, ताकि राज्य में कृषि रोजगार का रूप ले सके. लेकिन, कृषि योजनाओं की जानकारी किसानों को नहीं है. कुछ किसान कृषि योजनाओं से लाभान्वित हो रहे है, जिनकी संख्या सीमित है. इसका वजह है कि योजनाओं पर अफसरशाही हावी है.

Sunday 12 July 2020

बिहार की राजनीति में बदलाव की आहट

बिहार की राजनीति नीतीश कुमार, सुशील कुमारी मोदी, राम विलास पासवान, तेजस्वी यादव, जीतन राम मांझी, उपेंद्र कुशवाहा के इर्द-गिर्द धूमति है. यानी एनडीए बनाम महागठबंधन के बीच. बिहार विधानसभा चुनाव से पहले एक नयी पार्टी के साथ नये चेहरे का पदार्पण भी हुआ है. पार्टी का नाम है प्लरलस व अध्यक्ष का नाम पुष्पम प्रिया चौधरी, जो महत्वपूर्ण विकल्प के रूप में इंट्री की है.  हालांकि, पूर्व सांसद अरुण कुमार व पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा मिलकर पार्टी बनाने की कवायद की है, जो एनडीए के खिलाफ आवाज बुलंद कर रही है. 

    विश्व महिला दिवस यानी आठ मार्च को बिहार से प्रकाशित होने वाली सभी प्रमुख अखबारों के पहले पन्ने पर विज्ञापन आया, जिसमें पुष्पम प्रिया अपने-आप को भावी मुख्यमंत्री के दावेदार घोषित की और स्लांगन दिया हेट पॉलटिक्स…सब का शासन. इस विज्ञापन पर प्रमुख राजनीति पार्टियों की अपने-अपने तरीके से बयान भी आया. कुछ पार्टियों ने स्वागत तो कुछ पार्टियों ने आलोचना की. जदयू के नेता ने कहा कि मुख्यमंत्री की कुर्सी किराना दुकान पर नहीं  बिकता है, जिसे कोई खरीद लें. लेकिन, नयी पार्टी की प्रचार एजेंडा को अब प्रमुख पार्टियां अपनाने को विवश दिख रहे है.  राजद नेता खेतों में घुमने लगे है, तो सत्ताधारी पार्टी ने युवाओं को लुभाने के लिये बड़े नेता को जिम्मेदारी सौंपी है. इससे बिहार की राजनीति में बदलाव की आहट दिखने लगा है.  लेकिन, इस बदलाव का परिणाम चुनाव रिजल्ट के बाद ही पता चलेगा
पक्ष व विपक्ष में बयानबाजी

आगामी विधानसभा चुनाव को देखते हुये पक्ष व विपक्ष के बीच बयानबाजी शुरू है. 15 वर्ष जंगलराज बनाम 15 वर्ष कुशासन राज की नैरेटिव बनाने की कोशिश की गयी है. लेकिन, यह नैरेटिव एनडीए नेताओं को रास नहीं आ रहा है. क्योंकि एनडीए को उपलब्धियां गिनाने के लिये बापू सभागार, बिहार म्यूजियम, फ्लाइओवर व सड़क ही है, जिससे बिहारी जनता को क्या मिला.  जिसे हम सुशासन की सरकार कहते है, उस राज में नहीं बेरोजगारी घटी और नहीं पलायन रुका. उद्योग बंद होते चले गये. युवा, किसान, मजदूर सब के सब परेशान है. इससे एनडीए नेता सिर्फ लोगों को जंगलराज की याद दिला कर अपनी नाकामी पिछाने में लगी है. विकल्प के नाम पर डराने की कवायद की जा रही है. जबकि, राजद नेता तेजस्वी यादव सार्वजनिक तौर पर अपनी गलती मानते हुये माफी मांग कर अपने-आप को स्थापित करने में लगे है. लेकिन, बयान में ही उलझे है. वहीं, एनडीए के घटक लोजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष चिराग पासवान भी एक अलग स्टैंड बनाने की कोशिश कर रहे है. लेकिन, उनके स्टैंड से पर्दा नहीं हटा है.

बयानबाजी से दूर जनसंपर्क व #30 वर्षों का लॉकडाउन के साथ प्रचार

मढ़ौरा के खंडहर चीनी मिल

नयी पार्टी प्लुरलस के अध्यक्ष पुष्पम प्रिया प्रमुख पार्टियों की तर्ज पर बयानबाजी नहीं कर रही है. मीडिया से दूर. नहीं कोई साक्षात्कार व नहीं कोई तामझाम. सिर्फ अपनी टीम के साथ जिला-जिला व गांव-गांव घूम रही है. युवाओं, बेरोजगारों, किसानों से मिल कर समस्या जानने की कोशिश के साथ एकजुट कर रही है. वहीं, सूबे के उन सभी बंद पड़े उद्योग के खंडहर तक पहुंची है, जिसे जीवत करना है. किसाने के खेतों में पहुंची है, जहां प्रोसेसिंग प्लांट की जरूरत है. इतना ही नहीं, कुटीर उद्योग संचालित करने वाले लोगों के पास पहुंची है, जहां बेबुनियानी सुविधा व बाजार मुहैया कराने की आवश्यकता है. नयी पार्टी प्लुरलस का नारा है… पिछले 30 वर्षों से बिहार मृतप्राय बन गया है, जिसे अब जागृत कर पुराना गौरव वापस करना है.


Friday 10 July 2020

खतरनाक होते जा रहा है बिहार में कोरोना वायरस

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देश में दिन-प्रतिदिन कोरोना संक्रमित मरीजों की संख्या बढ़ रही थी, तब बिहार शांत था. कम टेस्टिंग से कम मरीज मिलेंगे. इस फॉर्मूला पर राज्य सरकार चली, जो आज बिहार में कोरोना वायरस खतरनाक होते जा रहा है. इसके बावजूद जांच की संख्या नहीं बढ़ायी जा रही है. राज्य के स्वास्थ्य मंत्री ने पिछले दिनों दावा किये थे कि रोजाना 10 हजार टेस्ट किया जा रहा है. इस दावे के विरूद्ध में सिर्फ रोजाना छह से सात हजार ही जांच किये जा रहे है. इसमें छह से सात सौ के बीच रोजाना संक्रमित मरीज मिल रहे है. पिछले दिनों नीति आयोग की कोरोना से संबंधित रिपोर्ट आयी है, जिसमें कहा गया कि देश के 28 राज्यों में बिहार का खराब स्थिति है.

लॉकडाउन का नहीं किया जा सका उपयोग

22 मार्च से लॉकडाउन लागू किया गया, तब सूबे में इक्का-दुक्का कोरोना संक्रमित मरीज मिल रहे थे. 22 मार्च से 30 अप्रैल तक सख्त लॉकडाउन लगाये गये, जिसमें निजी व पब्लिक ट्रांस्पोर्टेशन पूर्णत: बंद थे. दूसरे राज्यों में लाखों की संख्या में मजदूरों थे, जो एक मई से आने शुरू हुये. सरकार के पास दो माह का समय था, जिसमें बड़े अस्पतालों व जिला अस्पतालों के इंफ्रास्ट्रक्चर बढ़ा कर समुचित इलाज की व्यवसथा की जा सकती थी, जो नहीं की गयी. प्रवासी मजदूरों के लिये पंचायत स्तर पर कोरेंटिन सेंटर जरूर बनाये गये, जो खानापूर्ति थे. सोशल मीडिया पर वायरल दर्जनों वीडियो कोरेंटिन सेंटर की हकीकत उजागर हुयी. वायरल वीडियो में खाना नहीं मिलना, बिछावने की बेहतर व्यवस्था नहीं होना और सेंटर पर गंदगी आदि-आदि. इससे प्रवासी मजदूर कोरेंटिन सेंटर में रहने के बदले भाग गये, जो अपने-अपने घरों में रह कर बेधड़क होकर धूमने लगे. अब कोरोना संक्रमण का सामूदायिक फैलाव होने लगा है. इस फैलाव को रोकने के लिये पटना सहित 12 जिलों में दुबारा लॉकडाउन लगाने की नौबत आ गयी है.

डेडिकेटेड होस्पिटल की नारकीय व्यवसथा

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राज्य के बड़े अस्पतालों में एक है एनएमसीएच. इस अस्पताल को कोविड-19 के लिये डेडिकेटेड किया गया, ताकि भर्ती मरीजों की समुचित इलाज किया जा सके. लेकिन, एनएमसीएच की नारकीय व्यवस्था में स्वस्थ्य मरीज भी बीमार जो जाये. दो दिनों पहले एनएमसीएच की वीडियो वायरल हुआ, जो आइसीयू वार्ड का था. इलाजरत दो कोरोना मरीजों की दो दिनों पहले मौत हो गयी, जिसे वार्ड से हटाया नहीं गया और उस शव के बीच ही मरीजों को रखा गया है. वीडियो वायरल करने लड़का कहते है कि डॉक्टर, नर्सिंग स्टांफ या और से सहयोग मांगने पर भी मरीज को नहीं देखता है. अपने से ऑक्सीजन भी देना पड़ रहा है. यह स्थिति डेडिकेटेड अस्पताल की है, तो जिला अस्पतालों की अंदाजा लगा सकते है, जहां कोविड-19 मरीजों का इलाज किया जा रहा है.

सात दिनों में दोगुनी हो रही संक्रमितों की संख्या

30 मार्च तक पटना जिले में छह कोरोना संक्रमितों की संख्या थी और काफी धीरे-धीरे संख्या बढ़ रही थी. पटना जिले के आंकड़ों पर नजर डालेंगे, तो देखेंगे कि 30 अप्रैल तक 44, 31 मई तक 241, 30 जून तक 718 और एक जुलाई से सात जुलाई तक मरीजों की संख्या 1402 पर पहुंच गया. यह स्थिति सिर्फ पटना जिले की नहीं है. बल्कि पूर्वी चम्पारण, सीतामढ़ी, जमुई सहित कई जिलों की है. अब संक्रमण का फैलाव तेजी से हो रहा है, तो एम्स में बेडों की संख्या बढ़ायी गयी और एनएमसीएच को गंभीर मरीजों के लिये सुरक्षित किया गया है.

कोमा में है स्वास्थ्य व्यवस्था

कोरोना संक्रमण की बढ़ते खतरा के बावजूद सरकार, मंत्री व अधिकारी चेते नहीं. संक्रमण के फैलाव होते ही सूबे के स्वास्थ्य व्यवस्था खुद कोमा में चली रही है और स्वास्थ्य मंत्री व्यवस्था संभालने के बदले चुनाव की तैयारी में जुट गये है. स्वास्थ्य मंत्री कितने गंभीर है, यह मुजफ्फरपुर में चिमकी बुखार से बच्चे मर रहे थे, तब भी हम व आप देखे थे. उस समय प्रेस कंफ्रेंस में ही क्रिकेट के स्कोर पूछ रहे थे. अभी पार्टी के वरचुअल रैली में व्यस्त है. हालांकि, बिहार के लोगों में प्रतिरोधक क्षमता अधिक है, जिससे बड़ी संख्या में कोरोना संक्रमित मरीज स्वस्थ्य हो रहे है. यह सरकार की कृपा नहीं, यह भगवान की कृपा है.


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