Tuesday 26 April 2022

सियासी प्रपंच में कहीं गुम हो गया महंगाई की मुद्दा

महंगाई, महंगाई की शोर. यह शोर कभी पंचायत से लेकर राष्ट्रीय स्तर पर गूंजती थी. तब जब पेट्रोल 72 रुपये के करीब, डीजल 56 रुपये के करीब, रसोई गैस 410 रुपये और सरसो तेल 70 से 80 रुपये के बीच थी. महंगाई डायन खाय जात हैं, बहुत हुई महंगाई की मार... अब की बार... की सरकार. अब की बार... की सरकार बनी, जो लोगों की आशा और उम्मीद की सरकार है. लेकिन इस आशावादी सरकार के शासनकाल में रोजाना महंगी होती सामानों से आमलोग परेशान हैं. इस परेशानी की चर्चा प्रत्येक निम्न और मध्य वर्गीय घर में हो रही है. इसके बावजूद यह चर्चा घर-परिवार से बाहर नहीं निकल रही है. क्या इस आशावादी सरकार की प्रपंच में महंगाई का मुद्दा गुम हो गई है और विपक्षी पार्टियां भी इस अहम मुद्दें को उठाने की साहस नहीं जुटा पा रही है.

फाइल फोटो


  आशावादी सरकार की प्रपंच यह है कि 130 करोड़ की आबादी वाले देश में 80 करोड़ लोगों को मुफ्त में राशन उपलब्ध कराना. यह आबादी मुफ्तभोगी या कहे लाभार्थी हैं, जिसकी सोच और मानसिकता मुफ्त के चावल और गेंहू पर अटक गई है. इन्हें पेट्रोल महंगा हो या सरसो तेल या फिर हरी सब्जियां. इस महंगाई से इन 80 करोड़ लोगों को कोई फर्क नहीं पर रहा हैं. क्योंकि इनको नहीं कल की चिंता हैं और नहीं अपने बच्चे की भविष्य का फिक्र हैं. शेष 50 करोड़ की आबादी में करीब 40 करोड़ लोग नौकरीहारा हैं, जिनकी फिक्स मासिक वेतन हैं. इन लोगों को बढ़ती महंगई के अनुरूप मासिक वेतन में बढ़ोतरी नहीं हुई. लेकिन बढ़ती महंगाई की बोझ पड़ता चला जा रहा है. महंगाई की वजह से इन लोगों को घर चलाना मुश्किल हो गया हैं. इसकी आवाज उठाने वाली कॉरपोर्ट मीडिया को श्रीलंका और पाकिस्तान की महंगाई दिख रही है. लेकिन अपने देश की महंगई नहीं दिखती है.


अब आपको याद दिलाते हैं साल 2013-14. इस साल में भी लोग महंगाई से त्रस्त थे. केंद्र की सरकार महंगाई नियंत्रित करने में नाकाम साबित हो रही थी. तब गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री और अब के प्रधानमंत्री महंगाई को मुद्दा बना कर हर मंच पर जिक्र करना नहीं भुलते थे. इसके साथ ही कई बीजेपी के नेता प्यास, गोभी, आलू आदि के माला पहने और सिर पर गैस सिलिंडर लिए सड़क पर दिखते थे, जो आज केंद्रीय कैबिनेट के हिस्सा हैं. लेकिन वर्तमान समय में महंगाई साल 2013-14 की तुलना में ज्यादा भयावह और अनियंत्रित स्थिति में है. इसके बावजूद इन आंदोलनकारी बीजेपी नेताओं को अब महंगाई नहीं दिख रही है.


  महंगाई को भयावह इसलिए कह रहे हैं. क्योंकि साल 2014 में अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे पेट्रोल की कीमत 106.85 डॉलर प्रति बैरल थी. तब पेट्रोल पंप पर आमलोगों को पेट्रोल 71.41 रुपये प्रति लीटर मिल रही थी. आज कच्चे पेट्रोल की कीमत 111 रुपये प्रति बैरल है, जो साल 2014 की तुलना में पांच डॉलर अधिक है. लेकिन आमलोगों को पेट्रल 120 रुपये प्रति लीटर के करीब मिल रहा है. यानी साल 2014 की तुलना में 45 प्रतिशत की बढ़ोतरी की गई है. इतना ही नहीं, सरसो तेल तो दोगुना से भी अधिक कीमत पर बिक रही है. नमक भी 10 रुपये प्रति किलोग्राम की जगह 20-22 रुपये प्रति किलोग्राम बिक रही है. इसके अलावा दाल, आटा, मसाला, जीवन रक्षक दवाइयां सब की कीमतों में भारी इजाफा हुई है.



आशावदी सरकार ने महंगाई की मद्दा को हिजाब, रामनवमी जुलूस, मंदिर-मस्जिद में समेट दिया है. कॉरपोरेट मीडिया हाउस बढ़ती महंगाई से हो रही समस्या को छोड़ दिन-रात हिजाब और रामनवमी दिखाने में लगी हैं. लेकिन यह नहीं भूलना चाहिए कि महंगाई ने पूर्व में कई राज्य सरकारों और केंद्र सरकार को लील गई है. अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा था बर्दास्त की भी एक सीमा होती है, तो क्या जनता बर्दास्त की उस सीमा का इंतजार कर रही है. 

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